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यादों के झरोखे से लेखनी कहानी मेरी डायरी-14-Nov-2022 भाग 18

नैनीताल यात्रा



      इसके बाद हम सभी नैनादेवी के मन्दिर दर्शन हेतु गये। मन्दिर में सभी भगवान विराजमान थे। यह मन्दिर नैना झील के किनारे पर बना हुआ है।इस मन्दिर के पुजारी से हमने जब इस मन्दिर के इतिहास के विषय में पूछा तब उन्होने जो बताया इस प्रकार था:-

            एक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी सती को निमन्त्रण तक नहीं दिया।

          सती अपने पति शिवजी से  हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनखल में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। 

            आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उनकी पत्नी  सती हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी - देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। 

           दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश - भ्रमण करना शुरु कर दिया।

                  ऐसी स्थिति में जहाँ - जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ - वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैना देवी के रूप में सती अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा  होती है।

   यह सब सुनकर हमने भी वहाँ पूजा की ।

       आगे का वर्णन अगले भाग में पढि़ये।

यादों के झरोखे से २०२२
नरेश शर्मा " पचौरी 

      

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5 Comments

Radhika

05-Mar-2023 08:21 PM

Nice

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shweta soni

03-Mar-2023 10:08 PM

👌👌

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अदिति झा

03-Mar-2023 02:32 PM

Nice

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